हाल में नीति आयोग के सदस्य डॉ. वी.के. पॉल ने कहा था कि टीका कितना असरदार साबित हुआ है, यह जानने के लिए एंटीबॉडीज की जांच सिर्फ एक जरिया है। यदि एंटीबॉडीज नहीं बनी हैं तो यह मतलब नहीं है कि टीके ने असर नहीं किया। शरीर की कोशिकाओं की जांच से भी इसका अनुमान लगाया जा सकता है। इन कोशिकाओं में प्रतिरोधक क्षमता आ जाती है। जब दोबारा वायरस आता है तो यह उसे पहचान लेती हैं और संक्रमण नहीं होता है।
दूसरे, यूएस एफडीए ने कुछ समय पूर्व एक बयान में कहा था कि एंटीबॉडीज जांच को सिर्फ यह जानने के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए कि किसी व्यक्ति में पूर्व में कोरोना संक्रमण हुआ है या नहीं। यह इम्यूनिटी तय करने का अंतिम मापदंड नहीं हो सकता है। बीएमजे में प्रकाशित एक शोध के मुताबिक, मौजूदा एंटीबॉडीज जांच सौ फीसदी सटीक नहीं हैं। यह जरूरी नहीं कि वह एंटीबॉडीज को पहचान पाएं।
0 टिप्पणियाँ