काफी दिनों से मैं कुछ लिखने की सोच रही थी...लेकिन क्या लिखूं कुछ फैसला ही नहीं कर पा रही थी...दिन महीने साल बीत गए लेकिन कुछ लिखने की सोच कभी साकार ही नहीं हो पा रही थी..लिखने से पहेल सबसे बड़ा मुद्दा तो ये ही था कि आखिर लिखना क्या हैं..मैं कोई बहुत बड़ी राइटर तो हूं नहीं कि बस जो मन में आया लिख डाला..काफी सालों की मशक्कत के बाद आखिर आज मैंने अपनी लेखनी उठा ही ली..लेकिन फिर एक सवाल जो मेरे दिमाग में कौंधा वो ये आखिर लिखूं क्या.. लिखने के लिए किसी विषय की कमी नहीं है..लेकिन दिक्कत ये है कि इतना कुछ है लिखने को कि समझ ही नहीं आ रहा कि शुरुआत कहां से करूं.. तो आज मैंने सोच ही लिया कि कुछ भी हो कुछ तो लिखना ही हैं..और किसी मुद्दे पर लिखने से पहले तो उसके लिए काफी रिसर्च भी तो चाहिए.. खैर इन सब को दरकिनार करते हुए मैंने बस ऐसे ही कुछ लिखने के लिए मैदान संभाल लिया,, हम में से ना जाने ऐसे कितने लोग है जिनके दिलोदिमाग में इतना कुछ चलता रहता है कि अगर उसे शब्दों का रुप देखकर पन्नों पर उकेरा जाए तो ना जाने कितनी पोथियां गढ़ जाए...लेकिन वो पहला शब्द क्या हो...शुरुआत कहां से हो इसी में अटक कर लिखने के ना जाने कितने अरमान कही दब जाते है..लिखना एक बड़ी कला है.. और कला को विकसित करने के लिए ही मैंने ये शुरुआत की है...हमेशा मन करता है कि कुछ ऐसा लिखूं कि बस दिल की गहराई में उतर जाए...ऐसा कुछ कि जो पढ़े वो मंत्रमुग्ध हो जाए... वो हकीकत हो या फसाना... या सिर्फ कोरी कल्पना..कुछ भी हो लेकिन ऐसा जो आपकों बांधे रखे इन शब्दों के जाल में...ये मेरी शुरुआत है.. इस उम्मीद के साथ..कि जब इतने सालों बाद ये शब्द उकेरे है तो कभी ना कभी तो ये आपके दिल की गहराई में भी समा ही जाएंगे..